
नागार्जुन बुद्ध विहार बिलासपुर के बौद्ध समाज ने किया धम्मरथ का स्वागत।
एवं मे सुतं। सुत्र से पर्दा उठा दिया पूज्य भदन्त धम्मतप जी, राजनांदगांव ने।
बिलासपुर। एक भारत बौद्धमय भारत निर्माण हेतु धम्मरथ का सर्वप्रथम स्वागत पंचशील बुद्ध विहार बिलासपुर के उपासक एवं उपासिकाओं ने किया, पश्चाताप धम्मरथ का स्वागत नागार्जुन बुद्ध विहार के बौद्ध समाज द्वारा किया गया।
छत्तीसगढ़ के 33 जिलों में सद्धम्म की वाणी जन – जन तक पहुंचे के उद्देश्य से द्वितीय चरण में भम्रण में निकले पूज्य भदन्त धम्मतप जी, राजनांदगांव एवं धम्मरथ का स्वागत नागार्जुन बुद्ध विहार में उपस्थित होकर बौद्ध समुदाय ने स्वागत किया। पूज्य भदन्त धम्मतप जी ने उपदेशित करते हुए कहा कि त्रिपिटक के बौद्ध साहित्य में देखने को आता है भगवान बुद्ध के उपदेश के प्रारंभ में एवं में सुतं। ऐसा वाक्य लिखा होता है इस वाक्य का अर्थ ऐसा मैने सुना है। होता है भदंत धम्मतप जी ने इस वाक्य से पर्दा उठाते हुए कहानी के माध्यम उपदेशित करते हुए कहते है भगवान बुद्ध की धम्म स्थली सभा में भगवान के मुखार्ग से उपदेश सुनने के लिए हजारों एवं सैकड़ों की संख्या में राेजाना जन समुदाय उपस्थित होते है। उनमें से ऐसे भी लोग होते है जो नियमितपने से उपदेशों को श्रवण करते है एक दिन भगवान बुद्ध की धम्म स्थली सभा में एक व्यभिचारिणी महिला एवं चोर भी उपस्थित हुआ, भगवान बुद्ध प्रतिदिन की भाँति उस दिन भी आये धम्म सभा में आये हुए उपासक – उपासिकाओं को उपदेशित करने के पश्चात भगवान ने रोजाना की तरह एक वाक्य को कहा जाओं अपना – अपना काम करों। इस वाक्य को सुनकर व्यभिचारिणी महिला एवं चोर चौक गये और हक्का – बक्का रह गये वो दोनों सोचने लगे रात्रि का दुसरा – तिसरा पहर है उस पहर में मै व्यभिचार का कार्य करती हूँ उसी तरह चोर भी समझ गया मै तो इस पहर में चौरी का कार्य करता हूँ, भगवान कैसे कह रहे है जाओं अपना – अपना काम करों भगवान इतने लोगों के बिच में सब कुछ जान गये और लोगों को ना समझे इस तरह का वाक्य कह रहे, लेकिन भगवान बुद्ध की देशना सुनने रोजाना आने वाले उपासक – उपासिकाओं ने भगवान बुद्ध के कथन को भलीभाँति जानते थे जाओं अपना – अपना काम करों का तात्पर्य होता रात्रि के दुसरे – तिसरे पहर है यह पहर ध्यान के लिए अनुकुलित है। जाओं ध्यान करों ऐसा भगवान का कहना होता था लेकिन व्यभिचारिणी महिला एवं चोर ने उसका अर्थ ही अलग निकाल लिया इसलिए भगवान बुद्ध के उपदेश के प्रारंभ ग्रथों में “एवं मे सुतं।” लिखा है उसका अर्थ ” ऐसा मैने सुना है।” भगवान बुद्ध ने ऐसा कहा है या ऐसा बोला है ऐसा नहीं लिखा है। आप किसका उपदेश किस ढंग लेते है, उसे कैसे श्रवण करते है, किस तरह से सुन कर चलते है, सुनकर किस ढंग से रखते हो। ये आपका मामला होता है। इसलिए भगवान बुद्ध की वाणी उपदेश को कोई गलत तरिके से रखे या समझे वो उसका मामला है इसलिए ” एवं मे सुतं।” का अर्थ ही होता है ऐसा मैने सुना है। हम सब संसार में देखते है कोई अच्छा भी बोलता है उसे वाणी को तोड़ मड़ो कर बोलते है और कहते है उसने ऐसा कहा है, उसने ऐसा ही बोला है। मै ऐसा सुना है इस वाक्य को इसलिए धम्म ग्रथों के प्रारंभ में लिया गया है ताकि कोई यह ना कह सके कि भगवान बुद्ध ने ऐसा कहा है। आप अपनी समझ से किसी के वाक्य को जैसा है वैसा नहीं रखकर तोड़ – मरोड़ कर उन पर थोप ना दे इसलिए भगवान बुद्ध के धम्म ग्रथों में “एवं मे सुतं।” यह वाक्य बहुत ही अनुकरणीय उपदेश है। मैने ऐसा सुना। आप सभी लोग सही ढ़ग से समझ गये होंगे तो भगवान बुद्ध की वाणी, उपदेश को जैसा है वैसा देखें, और समझे एवं आचरण में लाये। भदन्त धम्मतप जी के साथ राजनांदगांव से वरिष्ठ समाज सेवक कन्हैयालाल खोब्रागड़े जी एवं दक्षिण कौशल पत्रिका के संपादक उत्तम कुमार जी उपस्थित थे। साथी बिलासपुर नागार्जुन बुद्ध विहार के उपासक उपाशिकाएं सर्व श्री सुखनंदन मेश्राम जी नारायण हमने, मगन गेड़ाम,अशोक वाहने, पूजा लोकेश बौद्ध कमलेश लवहात्रे,विमलेश ऊके राजेंद्र गणवीर, मधुकर वासनिक मुकेश हुमने,माधुरी दामले संस्कृति रामटेके,सत्यभामा नंदागौरी,श्यामा हुमने, उजाला हुमने संतोष खोबरागड़े एवं हरीश वाहने की उपस्थित थे
