रंगमंच जीवन की बानगी है। वह समाज को आईना दिखाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करती है। समाज मानव समुदाय से बनता है और मानव को अनछुए पहलुओं से अवगत कराने में नाटक विशिष्ट कड़ी बन सकता है। ऐसे कई भावाभिव्यक्ति को ध्यान में रखते हुए नाटक या रंगमंच अद्वितीय कला का संवाहक बनकर सामाजिक सरोकार के सामने ढाल बनकर उभरता है। न्यायधानी कहे जाने वाले बिलासपुर शहर में कला और संस्कृति के संरक्षण संवर्धन को ध्यान में रखते हुए संगम नाट्य समिति लगातार शहर में नाट्य कार्यशालाएं आयोजित करती आ रही है। स्कूल, कॉलेज के बच्चों को सांस्कृतिक गतिविधियों से अवगत कराने हेतु लगातार प्रयासरत है। इसी तारतम्य में संगम थिएटर द्वारा 30 दिवसीय प्रस्तुतिपरक नाट्य कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है। इस कार्यशाला में इम्प्रोवाइजेशन, बॉडी लैंग्वेज, स्पीच, बॉडी मूवमेंट, स्क्रिप्ट रीडिंग, थिएटर गेम्स, डिक्शन, म्यूजिक, आदि का अभ्यास कराया जाएगा। कार्यशाला की शुरुआत दिनांक 18 जनवरी को नेहरू चौक के पास शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय परिसर राजेन्द्र नगर में की गई। जो दिनांक 18 फरवरी 2024 तक चलेगी। कार्यशाला में इस बार शहरी कलाकारों के साथ ग्रामीण कलाकारों को भी जोड़ा गया है। जिससे कस्बाई रंगमंच को प्रोत्साहन मिल सके। एक तरफ शहरी कलाकारों को शामिल किया गया तो वहीं दूसरी ओर आदिवासी कलाकारों को भी उतनी ही वरीयता दी जा रही है। लोक कलाकारों की अपनी शैली, नृत्य, नाट्य, संगीत, साहित्य, भाषा, संस्कृति, रीति रिवाज एवं परंपराएं हैं। जो बिल्कुल पृथक है। लेकिन उनकी जड़े बहुत मजबूत हैं।

इन सभी बातों को ध्यान में रखकर उनको रंगमंच की बारीकियों से अवगत कराने का प्रयास किया जाएगा। संस्था द्वारा लगातार नए प्रयोग किये जा रहे हैं। इस बार शहरी और ग्रामीण कलाकारों के साथ सामंजस्य बिठाकर प्रस्तुतिपरक नाट्य कार्यशाला के दौरान एक नया नाटक तैयार किया जाएगा। नाटक की भाषा हिंदी और छत्तीसगढ़ी में अनूदित है। शैलेन्द्र मणि कुशवाहा के निर्देशन में यह कार्यशाला निरंतर जारी है। कार्यशाला का समय प्रतिदिन शाम 6 बजे से रात्रि 9 बजे तक है। कार्यशाला का प्रबंधन रोहित वैष्णव, मन्नालाल गंधर्व व संस्कृति सिंह द्वारा किया जा रहा है। कार्यशाला में विशिष्ट सहयोग वरिष्ठ पत्रकार श्री हबीब खान, श्री सुरेंद्र वर्मा, डॉ. रश्मि बुधिया, प्राचार्य डॉ. मोहन लाल पटेल जी का मिल रहा है।

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