हमें प्रकृति को अपनी संपत्ति के रूप में नहीं, बल्कि एक संरक्षक के रूप में देखना है – बीके स्वाति दीदी
3 मार्च 2025, बिलासपुर। हर साल 3 मार्च को पूरा विश्व विश्व वन्यजीव दिवस मनाता है, जो जैव विविधता की सुरक्षा और संरक्षण पर केंद्रित होता है। लेकिन अगर हम इसे आध्यात्मिकता और मानवीय चेतना के दृष्टिकोण से देखें, तो यह दिवस हमें अपने अस्तित्व और प्रकृति के बीच के गहरे संबंध को पुनः खोजने का एक सुंदर अवसर प्रदान करता है। यह केवल जानवरों को बचाने या पेड़ लगाने की बात नहीं है, यह मनुष्य और प्रकृति के बीच खोए हुए सामंजस्य को पुनर्जीवित करना है। एक ऐसा संतुलन जो कभी अस्तित्व में था और फिर से हो सकता है।
उक्त वक्तव्य प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय बिलासपुर की मुख्य शाखा पुराना बस स्टैंड रोड स्थित राजयोग भवन की संचालिका बीके स्वाति दीदी ने विश्व वन्यजीव दिवस के उपलक्ष्य में कही। दीदी ने कहा कि हम अक्सर प्रकृति को कुछ बाहरी चीज़ के रूप में देखते हैं, जैसे जंगल, समुद्र और वन्यजीव। लेकिन सच तो यह है कि हमारे शरीर भी उन्हीं तत्वों से बने हैं – मिट्टी, जल, वायु, अग्नि और आकाश। यदि हम पेड़ काटते हैं, तो हमारी सांस लेने वाली हवा प्रभावित होती है। यदि हम जल को प्रदूषित करते हैं, तो हमारे शरीर में मौजूद जल भी प्रभावित होता है। यदि हम पशुओं का शोषण करते हैं, तो हमारी स्वयं की करुणा की भावना कमजोर हो जाती है। हमें प्रकृति को अपनी “संपत्ति के रूप में” नहीं, बल्कि एक संरक्षक व केयर टेकर के रूप में देखना चाहिए। यह ग्रह केवल हमारा नहीं है बल्कि यह सभी जीवों का भी है। किसी संसाधन का उपयोग करने से पहले स्वयं से पूछें क्या मुझे वास्तव में इसकी आवश्यकता है? जल, वायु और भोजन के प्रति कृतज्ञता का भाव रखे ये अधिकार नहीं, बल्कि आशीर्वाद हैं। रोज़ 5 मिनट शांत होकर बैठें और धरा को शांति के कंपन भेजें। कई शोध बताती हैं कि जहाँ लोग नियमित रूप से मेडिटेशन का अभ्यास करते हैं, वहाँ अपराध और हिंसा में कमी आती है। तो सोचिए, यह ऊर्जा हमारे ग्रह के लिए क्या कर सकती है! शाकाहारी भोजन करने से पशुओं और पर्यावरण को कम नुकसान होता है। एक पेड़ अवश्य लगाएं, पक्षियों को भोजन दें। धरती मां को अच्छे विचारों का सहयोग दें। यदि हर एक व्यक्ति इन छोटे-छोटे संकल्पों के साथ जिए तो दुनिया अवश्य बदल जाएगी। पेड़ों को एक प्यारभरा आशीर्वाद दें। पानी पीने से पहले उसका धन्यवाद करें। पक्षियों को प्रशंसा से देखें, उदासीनता से नहीं। क्योंकि सत्य यह है कि हम प्रकृति को नहीं बचा रहे हैं, हम स्वयं को बचा रहे हैं।
ईश्वरीय सेवा में,
बीके स्वाति
राजयोग भवन, बिलासपुर

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