घर को युद्ध भूमि नहीं घर को मंदिर बनाएं। – बीके निर्मला दीदी
26 मई 2025 बिलासपुर।
जिस प्रकार एक फल में कितने बीज है गिना जा सकता है। लेकिन एक बीज से कितने फलों की प्राप्ति होगी वह गिना नहीं जा सकता। उसी प्रकार जो हम देते हैं वही हमें एक बीज के असंख्य फलों की भांति बहुत बड़े परिणाम में वापस मिलता है यदि हम सुख चाहते हैं, तो सुख का बीज बोना होगा, यदि प्रेम चाहते हैं तो प्रेम का बीज बोना होगा, सम्मान चाहते हैं तो सबको सम्मान देना होगा। उक्त वक्तव्य प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की मुख्य शाखा टेलीफोन एक्सचेंज रोड स्थित राजयोग भवन सेवाकेंद्र में रीवा से पधारे निर्मला दीदी ने कहा।
दीदी ने आगे बताया कि किसी के साथ कोई भी व्यवहार करने से पहले स्वयं से जरूर पूछ ले कि यही व्यवहार अगर हमारे साथ कोई दूसरा करे या ऐसा जो हम दूसरों के प्रति सोच रखते हैं वैसे ही सोच कोई हमारे प्रति रखें तो क्या वह हमें पसंद आएगा? हम वैसा ही व्यवहार करें जैसा हम दूसरों से चाहते हैं। घर में छोटी-छोटी बातों में परेशान हो जाना, एक दूसरों से शिकायत करना, क्रोध करना, अपमान करना, दुःख देना, ईर्ष्या करके अपने घर को युद्ध भूमि बना लेते हैं। घर को युद्ध भूमि नहीं घर को मंदिर बनाएं। घर मंदिर को प्रेम शांति की शक्ति से सजाएं। मंदिर वह जहां देवता निवास करते हैं देवता अर्थात देने वाला चाहे मुझे कोई कुछ भी दे परंतु मुझे सबको दुआ देना है और सबसे दुआ लेनी है। मंदिर में मूर्ति सभी को दुआएं आशीर्वाद ही देती है। दुआएं देना और दुआएं लेना जिससे आपका घर मंदिर बन जाएगा। कहते हैं कि किसी भी व्यक्ति की वाणी से उसका व्यक्तित्व परखा जा सकता है। बद्दुआ व श्राप के बोल बोलने वाला व्यक्ति सर्वप्रथम खुद वह बद्दुआ का अनुभव करता है। और दुआ देने वाला व्यक्ति सर्वप्रथम बहुत दुआएं अपने आप में अनुभव करता है। अर्थात यह दुआ देना ही दुआ लेना है। जिसके पास जो होगा वह वही देगा। अगर कोई हमें खराब या सड़ा हुआ कोई चीज दे तो हम लेंगे नहीं तो जो दे रहा है वह उसी के पास होगा अगर कोई दुख देता है और मैंने उसे ले लिया तो देने वाले से ज्यादा लेने वाला दुखी होता है। अगर कोई गलती करता है तो हम उसे शिक्षा देने की कोशिश करते हैं। कभी-कभी डांट देते हैं बार-बार किसको डांट ने से और ही वह हमसे घृणा करने लगता हैं। परंतु शिक्षा देने की सर्वोत्तम विधि है की क्षमा का रूप बनाकर शिक्षा दें। सिर्फ शिक्षा नहीं दे साथ में क्षमा भी करे और शिक्षा भी दो क्षमा भी करो और क्षमा मांगना कमजोर व्यक्ति का काम नहीं है। शक्तिशाली व्यक्ति कर सकता है। क्षमा मांगने के लिए अभियान का त्याग और क्षमा करने के लिए विशाल हृदय की आवश्यकता होती है। हम सोचते हैं सामने वाला अच्छा बने वह ठीक से बात करें तो हम करेंगे लेकिन वास्तविकता तो यह है की अच्छाई की शुरूआत स्वयं से ही करनी होती है हमारी अच्छाई ही संसार को अच्छा बनाएगी जब किसी को हम तिलक लगाते हैं। तो वह तिलक पहले स्वयं की उंगली में लगाना पड़ता है ठीक उसी प्रकार वैसे ही अच्छाई की शुरुआत भी स्वयं से करें फिर स्वयं का प्रभाव घर परिवार पर पड़ता है घर का प्रभाव मोहल्ले में पड़ेगा मोहल्ले का प्रभाव देश में देश का प्रभाव विश्व में पड़ेगा।
इससे पहले सेवा केंद्र संचालिका बीके स्वाति दीदी ने रीवा से पधारे निर्मला दीदी जी का परिचय दिया। निर्मला दीदी जिन्होंने अपना जीवन 1966 में मानव कल्याण एवं ईश्वरी सेवाओं में पूर्ण रीति से समर्पित किया। बचपन से ही आध्यात्मिक में रुचि थी। भगवान को पानी की इच्छा थी। और आपका जीवन अनेकों के लिए प्रेरणादाई है।

ईश्वरी सेवा में
बीके स्वाति दीदी
राजयोग भवन बिलासपुर

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