




गंभीर समस्या से जूझ रहे ग्राम परसापानी के लोग
21 साल से विकास की प्रतीक्षा में अटका गांव न पुल, न सड़क, न पानी और जर्जर स्कूल
स्कूल भी गिरने की कगार पर, ग्रामीणों का जीवन संकट में
कोटा विधानसभा क्षेत्र का परसापानी गांव… विकास के वादों का सबसे दर्दनाक उदाहरण। साल 2004 में ग्राम पंचायत बना, लेकिन 21 साल बाद भी यहां बुनियादी सुविधाएँ सिर्फ कागज़ों में हैं। न पुल है, न पक्की सड़कें… न सही स्कूल और न ही नल-जल योजना का पानी। हालात इतने खराब कि बरसात आते ही यह गांव मानो दुनिया से कट जाता है। परसापानी के ग्रामीणों ने बार-बार प्रशासन से गुहार लगाई, लेकिन नतीजा आज भी सिर्फ उम्मीद और इंतजार ही है।
गांव के बीच से बहती जुनवानी नदी पर आज़ादी के बाद से आज तक एक भी पुल नहीं बन सका। बरसात में नदी उफान पर होती है और गांव का रास्ता पूरी तरह बंद। ऐसे वक्त में स्कूली बच्चों को कंधे पर बैठाकर ले जाना पड़ता है। कई बार बच्चे पानी में फिसलते-फिसलते बचे हैं। ग्रामीण बताते हैं— बरसात में मोबाइल, बैग, कपड़े—सब नदी में बह जाते हैं। लेकिन 21 साल में किसी ने इस नदी पर पुल बनाने की दिशा में एक कदम तक नहीं उठाया।परसापानी का प्राथमिक स्कूल पूरी तरह जर्जर हालत में है। दीवारें फट चुकी हैं, छत का प्लास्टर लगातार गिर रहा है, और कक्षाओं में बैठना खतरे से खाली नहीं। बच्चों के लिए न डेस्क है, न कोई सही सुविधा। आंगनबाड़ी भवन भी बदहाल होकर बंद पड़ा है, जिसकी क्लासें मजबूरन पंचायत सचिवालय के छोटे कमरे में ली जा रही हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि जिला शिक्षा अधिकारी ने कई बार शिकायत के बावजूद कोई संज्ञान नहीं लिया। बच्चों की पढ़ाई जोखिम के भरोसे चल रही है।गांव में जल जीवन मिशन के नाम पर दो बड़ी पानी की टंकियाँ बनाई गईं… बोरिंग की गई… पाईपलाइन का सामान भी आया… पर पानी? आज तक किसी के घर नहीं पहुंचा। पूरी योजना आधे रास्ते में छोड़ दी गई। टंकियाँ आज फोटो खिंचवाने की जगह बनकर रह गई हैं। ग्रामीणों का कहना है— सरकार योजना का नाम लेकर वाहवाही लेती है, पर हमें एक घड़ा पानी तक नहीं मिलता।
मुकुंद केरकेट्टा,,ग्रामीण
गांव की शासकीय उचित मूल्य दुकान की हालत खंडहर जैसी है। दीवारें टूटी, छत उखड़ी हुई… इसलिए इसे खुले आसमान के नीचे अस्थायी रूप से चलाया जा रहा है। ग्रामीणों को राशन लेने भी मुश्किल होती है। पंचायत की सड़कों का हाल इतना खराब है कि बरसात में गांव में बाइक भी नहीं घुस पाती। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत गांव को सड़क मिलनी थी, लेकिन अब तक कागजों से बाहर नहीं निकली। इधर, गांव के आसपास की वनभूमि पर कब्जे शुरू हो गए हैं, जिसकी शिकायतों के बाद भी कार्रवाई नहीं हुई।21 साल में कई नेताओं ने परसापानी को गोद गांव घोषित किया, वादा किया कि गांव मॉडल बनेगा… लेकिन न एक योजना पूरी हुई, न कोई स्थायी काम हुआ। ग्रामीण कहते हैं— गोद गांव कहने से पेट नहीं भरता… सड़क, स्कूल, पानी चाहिए… जो आज तक नहीं मिला।ग्रामीणों का भरोसा अब प्रशासन से उठता जा रहा है। कई बार शिकायत और ज्ञापन देने के बावजूद अधिकारियों ने सिर्फ़ आश्वासन दिया, काम नहीं।
रेबेलेशन मिंज,,ग्रामीण
हाल ही में राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष निलेश विश्वास गांव पहुंचे। उन्होंने जर्जर स्कूल, अधूरी नल-जल योजना, टूटी सड़कों और नदी पर पुल न होने की गंभीर समस्याओं को समझकर प्रशासन से तुरंत कार्रवाई करने की मांग की। उन्होंने कहा कि परसापानी जैसे गांव विकास के दावों की पोल खोलते हैं और सरकार को तत्काल इस पर ध्यान देना चाहिए।
नीलेश बिस्वास,,प्रदेश अध्यक्ष एनसीपी
परसापानी की कहानी सिर्फ एक गांव की नहीं, बल्कि उस सिस्टम की है जहाँ कागजों पर योजनाओं की भरमार है, लेकिन जमीन पर नतीजे शून्य। 21 साल से इस गांव के लोग पुल, स्कूल, सड़क और पानी की बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं। सवाल यही है,क्या परसापानी को विकास देखने के लिए और 21 साल इंतजार करना पड़ेगा।कब यहां के बच्चे सुरक्षित स्कूल तक जा पाएंगे… कब गांव बरसात में डूबने से बचेगा और कब विकास की रोशनी वास्तव में परसापानी तक पहुंचेगी।






