
बिलासपुर। अरपा नदी के तट पर हर साल बड़ी श्रद्धा और उत्साह के साथ छठ पूजा का आयोजन किया जाता है। बिहार और पूर्वी उत्तरप्रदेश से आए प्रवासी समुदाय के लिए यह पर्व आस्था का प्रतीक है। तोरवा पुल के नीचे स्थित छठ घाट पर इस अवसर पर हजारों की भीड़ उमड़ती है। प्रशासन और नगर निगम की पूरी टीम सुरक्षा, साफ-सफाई और रोशनी की बेहतरीन व्यवस्था में जुटी रहती है।
लेकिन इसी के साथ अब शहर में एक नई बहस जन्म ले चुकी है — छत्तीसगढ़ का लोकपर्व “भोजली” आखिर कब पाएगा वह सम्मान, जो छठ पूजा को मिलता है?
स्थानीय लोगों का कहना है कि भोजली पर्व छत्तीसगढ़ की संस्कृति और लोक आस्था का अहम हिस्सा है। हर साल महिलाएं पारंपरिक गीतों और अनुष्ठानों के साथ भोजली विसर्जन करती हैं। लेकिन जब भी आयोजन के लिए भोजली घाट की जगह की मांग की जाती है, तो प्रशासन और नगर निगम का रवैया उदासीन दिखाई देता है।

शहर के कई समाजसेवी और सांस्कृतिक संगठनों ने कहा कि नगर निगम को अपने ही राज्य की परंपराओं और लोक आस्था के प्रति भी उतनी ही संवेदनशीलता दिखानी चाहिए, जितनी बाहर से आए पर्वों के लिए दिखाई जाती है। उनका कहना है —
“हम किसी धर्म या प्रदेश विशेष के त्योहार के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ की मिट्टी से जुड़े पर्वों की भी पहचान और सम्मान जरूरी है।”
स्थानीय नागरिकों का आरोप है कि छठ पूजा के लिए प्रशासन पहले से घाट की मरम्मत, सफाई, रोशनी, सुरक्षा और टेंट जैसी व्यवस्थाएं करता है, जबकि भोजली पर्व के समय ऐसी कोई पहल नहीं होती। यह दोहरा रवैया स्थानीय परंपराओं के प्रति आसमान व्यवहार दर्शाता है।
कुछ लोगों का यह भी कहना है कि भोजली जैसे लोकपर्वों को अगर प्रशासन का सहयोग मिले, तो यह न केवल छत्तीसगढ़ी संस्कृति को बढ़ावा देगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को अपनी परंपराओं से जोड़ने का माध्यम बनेगा।
वहीं, नगर निगम अधिकारियों का कहना है कि वे हर धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम में सहयोग देने के लिए तैयार हैं, लेकिन इसके लिए संबंधित संगठन या समुदाय से औपचारिक प्रस्ताव और अनुमति प्रक्रिया पूरी करनी होती है।

फिलहाल, छठ पूजा की तैयारियां जोरों पर हैं और दूसरी ओर भोजली प्रेमी फिर से अपने पर्व को समान मान्यता दिलाने की मांग को लेकर सक्रिय हो गए हैं। लेकिन जो सक्रियता छठ पूजा में प्रशासनिक स्तर पर देखी जाती है वह बाकी कार्यक्रमों में क्यों नहीं दिखते जिस तरह से नगर निगम से लेकर प्रशासनिक अधिकारी निरीक्षण कर व्यवस्थाओं का जायजा ले रहे हैं अगर भोजली पर्व को भी इसी तरह से प्रशासनिक सक्रियता दिखाई जाए तो यह पर भी एक अपनी अलग पहचान बन सकता है शासन एक प्रदेश के पर्व पर छत्तीसगढ़ में सार्वजनिक छुट्टी की घोषणा करता है लेकिन लोक पर्व भोजली पर न जाने ऐसी उदासीनता क्यों दिखाई जाती है यह कुछ सवाल है जिसके जवाब अभी भी ढूंढे जा रहे हैं 22 सालों में किस तरह से बड़ा छठ घाट देखिए अगले अंक में
