रामायण जीवन का सार – बीके संतोषी दीदी
16 अप्रैल 2025 बिलासपुर।
रामायण केवल एक धार्मिक ग्रंथ ही नहीं है बल्कि यह मनुष्य को जीवन में बहुत कुछ सीख देता है। रामायण के हर एक चरित्र से कुछ न कुछ शिक्षा अवश्य प्राप्त होती है। यदि व्यक्ति रामायण को सुनने के साथ उससे मिलने वाली सीख को अपने जीवन में अनुसरण करे तो वह एक सफल जीवन व्यतीत कर सकता है। उक्त वक्तव्य प्रजापिता ब्रह्माकुमारी की मुख्य शाखा राजयोग भवन बिलासपुर सेवाकेंद्र की वरिष्ठ राजयोग शिक्षिका बीके संतोषी दीदी ने ग्राम भरारी में आयोजित अखंड नवधा रामायण के शुभ अवसर पर कहा। दीदी ने आगे बताया कि रामायण में राम जी को मर्यादा पुरूषोत्तम कहा गया है, राम जी के चरित्र में त्याग की कहानी है। राम जी का विनम्र आचरण , बड़ों और छोटों को सम्मान देना हमें एक-दूसरे के साथ बिना किसी भेद भाव के समान व्यवहार करना सिखाता है। हमें जानवरों के साथ भी प्यार और दया का व्यवहार करना चाहिए। सच्चा इंसान वह है जो सबसे समान व्यवहार करता है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम जिनके सामने चाहे कैसी भी परिस्थिति आई लेकिन अपने कर्तव्य से कभी भी पीछे नहीं हटे। धैर्यता पूर्वक उन परिस्थितियों का सामना करके वह राजा राम से प्रभु राम बन गए। तो वही मां सीता की पवित्रता दर्शायी गई है। विपरीत परिस्थितियों को स्वीकार कर अपनी निष्ठा को बनाए रखकर समर्पणता का प्रतीक है। अपने कार्य के प्रति परिवार के प्रति या परमात्मा के प्रति समर्पणता सिखाती है मां सीता जी का चरित्र। लक्ष्मण जो सदैव अपने बड़े भाई राम जी के साथ रहे। हमें अपने जीवन में सदैव अपना लक्ष्य लेकर चलना चाहिए। लक्ष्य के प्रति सजग रहना और जैसा हमारा लक्ष्य होता है वैसा ही हमारे लक्षण भी होना चाहिए। भरत ने भैया राम की चरण पादुका को सिंहासन पर रखकर उनको शासक मानते हुए राज-काज संभाला। लक्ष्मण और भरत दोनों ही का अपने भाई के प्रति अथाह प्रेम, सम्मान दिखाया गया है। इससे सीख मिलती है कि परिवार में सदैव एकता रखनी चाहिए। भाई यदि भाई के साथ हो तो विषम परिस्थितियों को भी आसानी से पार किया जा सकता है। इसलिए परिवार में प्रेम और एकता बनाएं रखने चाहिए।
रामायण हमें अच्छा संग का महत्व बताती है। कैकेयी राम जी को अपने पुत्र से भी अधिक चाहती थी। लेकिन मासी मंथरा की बुरी सोच और गलत बातों में आकर उन्होंने राम के लिए 14 साल का वनवास मांगा। इसलिए हमें अच्छी संगत में रहना चाहिए ताकि नकारात्मकता के प्रभाव में है न आ जाए। कहा जाता है हमारा शरीर एक रथ के समान है और इस शरीर में 10 इंद्रियां है। पांच कर्म इंद्रियां और पांच ज्ञानेंद्रिय इन इंद्रियों पर जिनका पूर्ण रीति नियंत्रण होता है उन्हें राजा दशरथ के रूप में दिखाया गया है। इंद्रियों पर नियंत्रण होना अर्थात सोच, बोल व कर्म में समानता।

ईश्वरीय सेवा में
बीके स्वाति
राजयोग भवन, बिलासपुर

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