
भारत सरकार के निर्देश पर इन दिनों भारतीय रेल में “स्वच्छता पखवाड़ा” अभियान चलाया जा रहा है। देशभर के रेलवे जोनों में रोजाना अधिकारी-कर्मचारी स्टेशन पर सफाई अभियान, संवाद कार्यक्रम और निरीक्षण करते नजर आ रहे हैं। कहीं अधिकारी हाथों में झाड़ू लेकर प्लेटफार्म की सफाई करते दिखते हैं, तो कहीं यात्रियों से संवाद स्थापित कर फीडबैक लेने की औपचारिकता निभाई जा रही है।

रेलवे स्टेशनों में लगातार “स्वच्छता पखवाड़ा” के नाम पर गतिविधियां जारी हैं — कभी स्टालों का निरीक्षण, कभी झाड़ू लगाते अफसर, तो कभी ट्रेन में सफाई जांच। जोनल मुख्यालय से लेकर मंडल स्तर तक अधिकारी पूरे लवाजमे के साथ पहुंचकर फोटो सेशन में व्यस्त हैं।

बुधवार को आयोजित “अमृत संवाद” कार्यक्रम में खुद जोनल महाप्रबंधक ने यात्रियों से बातचीत की और उनसे रेल सेवाओं पर फीडबैक मांगी। लेकिन जब यात्रियों ने अपनी वास्तविक समस्याएं बतानी शुरू कीं — जैसे ट्रेन लेट होना, कोचों की गंदगी, महिला सुरक्षा सहित बिलासपुर आने वाली ट्रेनों को उसलापुर डाइवर्ट करने पर सवाल खड़े किए तो रेल अधिकारियों ने अपने जवाब में तर्क देते हुए यात्रियों को ही सुविधा देने की बात कही लेकिन अब जरा रेलवे ही बताएं कि जो यात्री बिलासपुर रेलवे स्टेशन पहुंचकर आसानी से ट्रेन पकड़ सकता है उसे अब उसलापुर जाकर ट्रेन पकड़ना पड़ता है अगर बिलासपुर स्टेशन के साथ उसलापुर स्टेशन में 2 मिनट का स्टॉपेज दे दिया जाता तो बिलासपुर के यात्रियों को असुविधा नहीं होती लेकिन रेलवे के अधिकारियों को तो अपना बखान करना है तो वह अपनी ही बातों को तो जनता के बीच पहुंचाएंगे यह संवाद औपचारिकता भर से और कुछ भी नहीं दिखी
वास्तविकता यह है कि भारतीय रेल अपने इंफ्रास्ट्रक्चर को आधुनिक बनाने के दावे तो जरूर कर रही है, लेकिन धरातल पर तस्वीर कुछ और ही है। ट्रेनों की देरी, अधूरी परियोजनाएं, और रखरखाव में लापरवाही जैसी समस्याएं अब भी जस की तस हैं। कई बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट वर्षों से अधर में लटके हुए हैं, जबकि रेलवे के प्रचार-प्रसार के अभियान पूरे जोश के साथ चलते रहते हैं।

यात्रियों का सवाल भी वाजिब है — क्या रेलवे की सफाई और व्यवस्था सुधार सिर्फ “स्वच्छता पखवाड़ा” तक ही सीमित है? अगर हर दिन अधिकारी उसी जिम्मेदारी के साथ काम करें, जैसा इन दिनों दिखाया जा रहा है, तो शायद भारतीय रेल वास्तव में “स्वच्छ” और “सुव्यवस्थित” बन सके।
अभी के हालात देखकर यही कहा जा सकता है कि सफाई से ज्यादा जोर साफ़ छवि दिखाने पर है। जरूरत है दिखावे से आगे बढ़कर स्थायी बदलाव लाने की — ताकि रेलवे की स्वच्छता और व्यवस्था केवल पखवाड़े तक सीमित न रह जाए, बल्कि हर दिन यात्रियों के अनुभव का हिस्सा बन सके।
