ब्रह्माकुमारीज मुख्य शाखा राजयोग भवन में बाल संस्कार शिविर का रंगारंग समापन
12 मई 2025 बिलासपुर।
8 वर्ष की आयु से 14 वर्ष की आयु बच्चों का टर्निंग पॉइंट होता है। जिसमें मुख्य रूप से संस्कार का निर्माण होता है। इस अवस्था में पड़ी आदतें ही आगे चलकर संस्कार का रूप ले लेती है। कहते हैं बच्चो के संस्कार उसकी स्वयं का जीवन ही नहीं बल्कि पूरे समाज की दिशा दशा तय करता है। बच्चों में ज्यादातर संस्कार उनके माता-पिता से आते हैं संस्कार विकसित करने में माता पिता की बहुत बड़ी भूमिका होती है। बचपन में दिए गए संस्कार आजीवन साथ देते हैं। इसलिए बच्चों बको अच्छे संस्कार देना आवश्यक है। उक्त वक्तव्य प्रजापिता ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की मुख्य शाखा टेलीफ़ोन एक्सचेंज रोड स्थित राजयोग भवन सेवाकेंद्र में छ: दिवसीय बच्चों के बाल संस्कार शिविर के समापन में सेवाकेंद्र संचालिका बीके स्वाति दीदी ने कहा। दीदी ने शिविर के आयोजन का उद्देश्य बताते हुए कहा कि आज की जो परिस्थिति हैं उसमें सबसे बड़ी चुनौती आती है बच्चों को संभालना एवम संस्कारवान बनाने की। क्योंकि आज सभी अभिभावको की यही शिकायत होती है कि आजकल कि बच्चे कहना नहीं मानते हैं, आखिर इसका कारण क्या है। यह छोटे बच्चे, छोटे पौधे की तरह है अभी हम इन्हें जो संस्कार दे रहे है, परवरिश कर रहे हैं, यही इनका भविष्य हैं हमारा भविष्य है।
बच्चे जब छोटे होते हैं तो हम समझते हैं अभी इनकी यह छोटी उम्र के हैं, अभी इनको आध्यात्मिकता की जरूरत नहीं, भगवान का नाम लेने की जरूरत नहीं, मंदिर जाने की जरुरत नहीं। जब उनको सीखने की जरुरत है तब उनको जरुरी नहीं समझा जाता करके सीखने से टाल दिया जाता है। और जब समय बीत जाता है तब तक बहुत देरी हो चुकी होती है। माता-पिता बच्चों के लिए ब्रह्मा होते हैं। बच्चों के पालन के लिए स्थापना के लिए भगवान ने आपको दिया है। तो इनकी सही परवरिश करना, सही संस्कार देने का सही समय यही है। चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक हो उनमें इस उम्र में ही परिवर्तन होना शुरु हो जाता है। तो जो हम सिखाते हैं उनका जीवन बन जाता है। बाहर की एक्टिविटी तो हर कोई करते हैं। लेकिन अंदर के वैल्यूज जिससे हमारा जीवन मूल्यवान हो जाता है। वो हम यहां ही सीख सकते हैं। तो यह अंत नहीं लेकिन शुभारंभ है। कई बच्चों के लिए बहुत कंप्लेन करते हैं कहना नहीं मानते हैं, हाइपर एक्टिवेट है। उसके लिए पहले हमें सीखना होगा। विचारों का शुद्ध होना बहुत जरुरी है पर हाइपर एक्टिव होना सही नहीं है। इसका कारण विचारों की गति तेज होना है। जिस वजह से बच्चे सही निर्णय नहीं ले पाते हैं। किसी चीज को परख नहीं सकते हैं। बच्चे कितने सेंसेटीव हो गए हैं। बड़ों को इसे समझना होगा। इन बच्चों को संभालना होगा। यह केवल हमारे नही बल्कि पूरे देश का भविष्य है। शिविर में मोटू-पतलू और शेर बच्चों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र रहे छः दिवसीय शिविर में बच्चों को माता पिता का सम्मान करना, देश भक्ति, मोरल वैल्यूज की कहानियां, एकाग्रता को कैसे बढ़ाएं, मोबाइल के दुष्प्रभाव के प्रति जागरूकता, पर्यावरण के प्रति जागरूकता पेड़ लगाओ, पानी को चार्ज करके पीएं, वंदे मातरम, हनुमान चालीसा एवं हमारी भारतीय दैवी संस्कृति से परिचय कराया। बच्चों ने अपनी विलक्षण प्रतिभा का परिचय देते हुए रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत कर मातृ दिवस के दिन अपनी मां को समर्पित किया। गीत व डांस, तबला, कविता के साथ-साथ जुम्बा, ड्रांइग, आदि प्रस्तुतिया रही। शिविर के समापन में सभी बच्चों ने इन छ: दिनों में जो सीखा अपना अपना अनुभव सुनाया। अभिभावकों ने भी बच्चों में शिविर से जो परिवर्तन हुआ अपने अनुभव सुनाए। सभी बच्चो का उमंग उत्साह बढ़ाने के लिए गिफ्ट्स दिए गए एवं कार्यक्रम के समापन में प्रसाद सभी ने स्वीकार किया। 100 से भी अधिक बच्चों की उपस्थिति रही।
कार्यक्रम को सफल बनाने में अंजू दुआ, पुष्पा अग्रवाल, एस. मणि , रंजन नीलानी , ट्विंकल गम्भीर, नवीन भाई, परमानंद भाई, राघवेंद्र भाई, कन्हैया पासवान आदि का विशेष सहयोग रहा।

ईश्वरीय सेवा में
बीके स्वाति
राजयोग भवन, बिलासपुर

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