बिलासपुर। दैहान पारा वार्ड क्रमांक 12 स्थित बूढ़ा महादेव मोहल्ला रविवार को भक्ति, आस्था और उत्सव के रंगों में डूबा रहा। आदिवासी समाज के लोगों ने 20 वर्षों से निरंतर चली आ रही पारंपरिक गौरा-गौरी पूजा का विसर्जन बड़े ही धूमधाम और श्रद्धा के साथ किया। यह पूजा भगवान शंकर और माता पार्वती के पुनर्मिलन का प्रतीक मानी जाती है, जो परिवार में प्रेम, समर्पण और एकता बनाए रखने का संदेश देती है।

पूरे मोहल्ले में सुबह से ही पारंपरिक वेशभूषा में सजे-धजे महिलाएं और पुरुष ढोल-नगाड़ों की थाप पर झूमते नजर आए। पूजा स्थल पर भक्ति गीतों और जयकारों से वातावरण गूंज उठा। गौरा-गौरी की मिट्टी की प्रतिमाओं की पूजा विधि-विधान से की गई। इसके बाद भव्य शोभायात्रा निकाली गई, जिसमें समाज के सभी वर्गों के लोग शामिल हुए। महिलाएं सिर पर कलश और प्रतिमाएं लेकर आगे बढ़ीं, जबकि पुरुषों ने नाचते-गाते श्रद्धा और उल्लास का प्रदर्शन किया।

शोभायात्रा के अंत में गौरा-गौरी की प्रतिमाओं का जल में विसर्जन किया गया, जो आस्था और परंपरा का प्रतीक माना जाता है। इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे। पूजा समिति के सदस्यों ने बताया कि यह आयोजन पिछले दो दशकों से लगातार होता आ रहा है और समाज में एकता, प्रेम और सामूहिकता की भावना को प्रबल करता है।

गौरा-गौरी पूजा आदिवासी समाज की सांस्कृतिक पहचान का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो न केवल धार्मिक आस्था बल्कि सामाजिक समरसता का संदेश भी देती है। बूढ़ा महादेव मोहल्ले में आयोजित यह विसर्जन समारोह जन-जन में परंपरा, भक्ति और भाईचारे की मिसाल बन गया।

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